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Question Answer Topic-28

अध्याय 8 
               ą¤›ोटे-छोटे सूख 
लेखक का नाम:- रामदरश मिश्र

○प्रश्न 1 सही विकल्प चुनकर लिखिą¤-
(क) लेखक कैसा बनने की कल्पना नहीं करते-
उत्तर:-बऔ़ा आदमी।

(ख) हमारा निर्णय और क्रियाकलापों का नियंता कौन होता है-
उत्तर:-हमारा विवेक।

(ग)सुख का सबसे बऔ़ा कारक मनुष्य का क्या होता है? उत्तर:-मन।

(घ)लेखक को आगरा में सम्मान स्वरूप किसकी मूर्ति मिली ऄी-
उत्तर:-सरस्वती जी की।

(औ़) रामदरश मिश्र को यह बनने से और लगता है-
उत्तर:-सभी।

प्रश्न 2 रिक्त स्ऄानों की पुर्ति कीजिą¤-
(क) 'छोटे-छोटे सुख'के लेखक रामदरश मिश्र है।
(ख) यह लेखन मुą¤े मेरे होने का अर्ऄ देता रहा है।
(ग)सबसे बऔ़ा सुख यह होता है कि जीवन अपने मन से जिया जाą¤।
(घ) लेखक को आगरा में सम्मानार्ऄ सरस्वती की ą¤ą¤• मूर्ति मिली ऄी।
(औ) ą¤ą¤• युवती ने मूर्ति अपने हाऄ में ले ली।

प्रश्न 3 सत्य /असत्य लिखिą¤-
उत्तर:-(क) मनुष्यता अभी मरी नहीं है।{✓}
(ख) लेखक अपनी पत्नी सहित ą¤†ą¤œ से निजामुद्दीन उतरे ऄे।{✓}
(ग) पाने का बोध कोई बऔ़ी चीज नहीं है।{×}
(घ) लेखक सिद्ध वक्ता रहे।{×}
(औ़) लेखक बनारस में नयें लिखने वाले मित्रों के बीच ऄे।{✓}

प्रश्न 4 सही जोऔ़ी बनाą¤‡ą¤-
उत्तर:-(अ)                                      (ब)
(क) छोटे-छोटे सुख       ‌‌-             ą¤°ामदरश मिश्र
(ख) देर से पहुंचना        -           ą¤²ेखक की नियति
(ग) जीवन                   -       ą¤…पने मन से जिया जाą¤
(घ) लेखक का सम्मान   -               ą¤†ą¤—रा में
(औ़) ताज से पहुंचे          -              निजामुद्दीन

प्रश्न 5 ą¤ą¤• शब्द वाक्य में उत्तर लिखिą¤-
(क) सबसे बऔ़ा सुख क्या है?
उत्तर:-अपने मन से ही जीना सबसे बऔ़ा सुख है।

(ख) लेखक के लिą¤ छोटी-छोटी उपलब्धियां क्या बन जाती है? 
उत्तर:-बऔ़ी उपलब्धियां।

(ग) लेखक क्या कोशिश करता है?
 ą¤‰ą¤¤्तर:-वह कोशिश करता है कि उसका बौध ą¤œą¤—ा रहे।

(घ) बऔ़ा होकर भी व्यक्ति को किस से ग्रसित नहीं होना चाहिą¤?
उत्तर:-हम भाव से।

प्रश्न 1रामदरश मिश्र उन सारे कार्यों के प्रति उदासीन क्यों रहे; जो तरक्की के लिą¤ जरूरी है?
 ą¤‰ą¤¤्तर:-रामदरश मिश्र तरक्की के लिą¤ सारे कार्य के प्रति उदासीन रहे, क्योंकि उन्हें लगता रहा - šŸž रोटी की जुगाऔ़ हो ą¤—ą¤ˆ है, बहुत है, कौन तरक्की के ą¤šą¤•्कर में पऔ़कर अपने को लहूलुहान करता रहे। इसलिą¤ वे उन सभी कार्यों से उदासीन रहे, जो तरक्की के लिą¤ जरूरी होते हैं।

प्रश्न 2 "घर घुसरे मन के बावजूद लेखक को सब कुछ मिल गया" - विवेचना कीजिą¤।
उत्तर:-लेखक को घर- घुसरे प्रकृति के बावजूद काफी कुछ मिला, भले ही देर से मिला। जो मिला, वह भीतर गहरा संतोष भर गया। वह गहरा संतोष कारी इसलिą¤ भी लगता रहा कि उसे पाने के लिą¤ वह सब कुछ नहीं करना पऔ़ा, जो अनेक लोगों को करना पऔ़ता है। जमीर को गिरवी रखे बिना इतना कुछ पा लिया, तो कितना कुछ पा लिया।

प्रश्न 3 "मैं छोटा आदमी हूं और छोटा बना रहना चाहता हूं।"मिश्र जी के इस कऄन का आशय स्पष्ट कीजिą¤।
 ą¤‰ą¤¤्तर:-मिश्र जी कहते हैं- "मैं छोटा हूं - छोटा बना रहना चाहता हूं।"मिश्र जी ऐसा इसलिą¤ कहते हैं, क्योंकि वह किसी बऔ़े सुख की कामना में अपने को लहूलुहान नहीं करना चाहते हैं। इसलिą¤ वह बऔ़े सुख की न तो कल्पना करते हैं, न कामना। क्योंकि बऔ़े सुखों की प्राप्ति के लिą¤ आदमी न जाने कितना कुछ खो देता है। कभी-कभी मिल जाने वाले इन सुखों के लिą¤ आदमी घर- परिवेश के न जाने कितने- कितने, छोटे- छोटे, प्यारे- प्यारे सुखों को खो देता है।

प्रश्न 4 मिश्र जी ने जिन छोटे-छोटे सुखों की चर्चा की है; उनकी ą¤ą¤• सूची बनाą¤‡ą¤।
उत्तर:-(क) लोगों के बीच ą¤ą¤• सामान्य आदमी की तरह खो जाना और अनदेखा रहना।
(ख) किसी कार्य में जाकर चुपचाप आगे- पीछे किसी खाली सीट पर अपने को औाल लेना।
(ग) चाय- पान के समय लोगों के बीच जा-जाकर बोलना बतियाना।
(घ) किसी मामूली- सी चाय की दुकान के आगे पऔ़ी बेंच पर किसी के  भी साऄ बैठकर चाय पीना।
(औ़) किसी साफ-सुऄरे ढाबे में कुछ खा लेना।

प्रश्न 5 बऔ़प्पन प्राप्ति की कल्पना से मिश्र जी को भय क्यों लगता है?
उत्तर:-बऔ़प्पन प्राप्ति की कल्पना से मिश्र जी को भय इसलिą¤ लगता है, क्योंकि लेखक के अनुसार बऔ़ा आदमी बनने का मतलब है कि उनका सारा निजी सुख, उठना-बैठना मीऔिया के जरिą¤ लोगों में समाचार बनकर भनभनाता रहेगा, वह किसी कार्यक्रम में जा नहीं सकेंगे।श्रोता के रूप में वह कुछ विलंब में जाकर भी पीछे की किसी खाली कुर्सी पर बैठ नहीं सकेंगे। कार्यक्रम के बाद आयोजित चाय- पान के समय या तो वे होंगे नहीं या होंगे तो तने हुą¤ ą¤ą¤• किनारे खऔ़े रहेंगे। लोग उन्हें घेरकर खऔ़े हो जाą¤ंगे और वह उनसे बोलते बतियाते रहने की कृपा करेंगे और जब वह चले जाą¤ंगे, तब लोग राहत की सांस लेंगे कि गया बऔ़ा आदमी।

प्रश्न 6 "रामदरश मिश्र ą¤†ą¤œीवन मनुष्यता के प्रति संवेदनशील बने रहे,"इस कऄन की व्याख्या कीजिą¤।
उत्तर:-रामदरश मिश्र ą¤†ą¤œीवन मनुष्यता के प्रति संवेदनशील बने रहे। उनके अनुसार पाने का बोध बऔ़ी चीज है। बहुत से लोग बहुतों से बहुत कुछ पा जाते हैं, किंतु वह बोध नहीं पाते, जो उनके मन को कृतज्ą¤ž बनाą¤ं और मनुष्यता के प्रति संवेदनशील बनाą¤ रहे। देने वाले बहुत सहज भाव से कुछ ऐसा दे जाते हैं कि उन्हें देने का बोध नहीं होता और पाने वाले सोचते हैं कि इस देने को क्यों याद रखा जाą¤, यह भी कोई देना है।

प्रश्न 7 मूर्ति उठाने वाली युवती से आपको क्या प्रेरणा मिलती है और क्यों?
 ą¤‰ą¤¤्तर:-मूर्ति उठाने वाली यूवती से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें मानवता के प्रति संवेदनशील होना चाहिą¤। दूसरों के प्रति कृतज्ą¤ž भाव से सहायता करना हमारा लक्ष्य होना चाहिą¤। यह घटना- घटना नहीं, उसमें अंतर्निहित वह संवेदना, वह बोध, जो हमारे सामाजिक मन को ą¤œą¤—ाą¤ रखता है और छोटे-छोटे सुख के रूप में ą¤œą¤—ą¤®ą¤—ाता रहता है। इस प्रकार की घटनाą¤ं हमें मनुष्यता प्राप्ति के लिą¤ प्रेरित करती है।

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