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”कवि परिचय”

(9) जयशंकर प्रसाद

(1) रचनाएं:-
                 (1) आंसु
                 (2) लहर
                 (3) कामायनी
                 (4) झरना 
(2)भाव पक्ष:-
                  प्रसाद जी के साहित्य में नैतिक, सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय चेतना का समावेश है। उन्होंने भारतीय अतीत के गौरव पूर्ण रूप को अपने साहित्य में उभारा है। उनके साहित्य में उत्साह और उमंग का आलोचक है। प्रेम करुणा तथा सौंदर्य की स्निग्ध आभा है।
(3) कला पक्ष:-
                    प्रसाद जी की भाषा में सहज प्रवाह तथा काव्य सौंदर्य है। रूपक, उपमा, उत्प्रेक्षा, संदेह, विरोधाभास आदि अलंकारों के साथ-साथ मानवीकरण का सफल प्रयोग उन्होंने किया है। उनके गीतों में गेयता, सरसत्ता, अनुभूति की गहनता, संक्षिप्तता तथा प्रभावोत्पादकता विद्यमान है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                             प्रसाद जी का हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है। हिंदी साहित्य में वे शीर्षस्थ कवि हैं। हिंदी जगत सदैव उनका आभारी रहेगा।

           (10) भवानी प्रसाद मिश्र
(1) रचनाएं:-
                (1) सतपुड़ा के जंगल
                (2) अनाम तुम आते हो
                (3) गीत फरोश
                (4)  खुशबू के शिलालेख
(2) भाव पक्ष:-
                     मिश्रजी की कविता उदात भाव और अश्रुपूरित होने के कारण जन-जन के हृदय को छूती है।उनके काव्य में मानवीय संवेदनाओं की अभिव्यक्ति हुई है। सादगी उनके काव्य के प्राण हैं। इसी सादगी ने उन्हें श्रेष्ठ बनाया है।
(3) कला पक्ष:-
                    उनकी भाषा न एकदम साहित्यिक है, न सामान्य बोलचाल की। उसमें सादगी, आकस्मिकता और प्रसन्नता का त्रिवेणी संगम हुआ है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                             मिश्रजी गांधीवादी और सर्वोदयी कवि है। 'दूसरा सप्तक' (1951)के प्रथम कवि होने के कारण इन्हें प्रयोगवादी कवि भी कहा जा सकता है। नई कविता के अग्रणी कवियों में उनका नाम आता है। इन सबसे ऊपर वे मानवतावादी कवि है।

           (11) बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'
(1) रचनाएं:-
                (1) उर्मिला
                (2) कुंकुम
                (3) रश्मिरेखा।
(2) भाव पक्ष:-
                    बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' ने स्वतंत्रता संग्राम के दौर में भोगे हुए अनुभव जीवन्त है तो उनसे उपजे जागृति के स्वर भी मुखर हैं। प्रेमाकुल संवेदनाएं मानवीय-भावनाओं से सराबोर है। प्रकृति के विविध रूप भी यंत्र तंत्र दृष्टव्य है।
(3) कला पक्ष:-
                     देशप्रेम और राष्ट्रीय चेतना से स्फूर्त होने के परिणाम स्वरूप रचनाओं में ओज प्रखर है,तो प्रेमप्रवण अभिव्यक्ति में कोमलता समाहित है।आधुनिक काल की राष्ट्रीय काव्यधारा में 'नवीन' का विशिष्ट स्थान है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                             पंडित बालकृष्ण शर्मा नवीन भारतीय संविधान निर्मात्री परिषद के सदस्य रहे। हिंदी को राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने के लिए उन्होंने महत्वपूर्ण प्रयास किए।

               (12) श्रीकृष्ण सरल
(1) रचनाएं:-
                  (1) मुक्ति गान
                  (2) बच्चों की फुलवारी
                  (3) चंद्रशेखर आजाद
(2) भाव पक्ष- कला पक्ष:-
                                   सरल जी का व्यक्तित्व बहुमुखी है।उनकी कविताओं का मूल स्वर राष्ट्रीयता और भावात्मक एकता है। गुप्तजी की ही तरह उन्होंने एक अभाव की पूर्ति की। सरदार भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे देशभक्त और वीर शहीदों के गौरवपूर्ण व्यक्तित्व को उन्होंने प्रकाशित कर नई पीढ़ी को प्रेरित करने का महान कार्य किया।
                          राष्ट्रीय सांस्कृतिक जीवन को उन्होंने बाल साहित्य के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। मातृभूमि का गौरव- गान उनका मुख्य लक्ष्य रहा। अपने नाम के अनुरूप सहज, सरल भाषा मैं अपने भावों को अभिव्यक्त किया है।
(3) साहित्य में स्थान:-
                             श्रीकृष्ण 'सरल' युग गायक, बाल साहित्य और शहीद साहित्य के रचनाकार के रूप में प्रसिद्ध है। वे क्रांति और राष्ट्रीयता के कवि हैं। सरलजी प्रमुख रूप के नवजागरण, छायावाद एवं नव युग के कवि है।

                  (13) तुलसीदास जी
(1) रचनाएं:-
                (1) दोहावली
                (2) कवितावली
                (3) रामचरितमानस।
(2) भाव पक्ष:-
                   तुलसीदास जी युगान्तकारी कवि है।राम गाथा आपके काव्य का विषय और रामगुणगान उनके काव्य का शेषु था। मानस में आदर्शों और मर्यादाओं के साथ भक्ति की पवन धारा बनी है। विनय पत्रिका में दैन्य अपनी सभी रूपों में प्रकट हुआ है। आपकी कविता भक्ति, ज्ञान और कर्म का सुंदर समन्वय है।
(3) कला पक्ष:- 
                   आपका ब्रज और अवधी भाषा में असाधारण अधिकार है। आप के काव्य में संस्कृत के साथ तत्सम शब्द प्रचुरता है। अपने भाव को उन्होंने ब्रज और अवधि के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। आपकी भाषा लोक भाषा है।आपके काव्य में अलंकार प्रयत्न साध्य न होकर स्वाभाविक रूप से काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। आपने दोहा, सोरठा, चौपाही के अलावा सभी प्रचलित शब्दों का प्रयोग अपने काव्य में किया है, अपने- अपने कार्य में सभी शैलियों 
का प्रयोग किया है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                               आप लेखक प्रतिभा के ध्वनि हैं, आपके काव्य में मानव जीवन का सर्वगण चित्रण हुआ है।आप भक्ति काल के सगुण धारा के राम भक्ति शाखा के प्रतिनिधि कवि है। आप हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि हैं।

                   (14) मैथिली शरण गुप्त
(1) रचनाएं:-
                   (1) पंचवटी
                   (2) यशोधरा
                   (3) साकेत
(2) भाव पक्ष:-
                   गुप्तजी आदर्शवादी कवि है।भारतीय संस्कृति उनके काव्य की आत्मा और राष्ट्रीय चेतना उनके काव्य की श्वांस है। भगवान राम के वे अनन्य उपासक रहे हैं।उन्होंने मानव जीवन की प्रायः सभी अवस्थाओं  एवं परिस्थितियों का अपने काव्य में वर्णन किया है। भारत भारती उनके राष्ट्रप्रेम की घातक रचना है। उन्होंने ओजस्वी भाषा में प्राचीन भारत का गुणगान किया है। उनकी कविता का मूल स्वर राष्ट्रीय और संस्कृतिक है।
(3) कला पक्ष:-
                    उन्होंने खड़ी बोली को काव्य के उपयुक्त सिद्ध किया। वह भाषा के अनोखे कलाकार है। भाषा प्रसाद गुण से ओत-प्रोत है। प्रबंध काव्य लिखने में वे कुशल है। उनकी शैली अपने ढंग की है। प्रसाद गुण उनकी रचनाओं में सर्वत्र व्याप्त है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                             गुप्त जी की रचनाएं हिंदी साहित्य की अमर उपलब्धि है। लोकप्रियता तथा जनमानस तक पहुंचने की दृष्टि से आधुनिक काल के कवियों में वह प्रथम पंक्ति के अधिकारी है। 

         (15) शिवमंगल सिंह 'सुमन'
(1) रचनाएं:-
               (1) जीवन के गान
               (2) मिट्टी की बारात
               (3) विश्वास बढ़ता ही गया
               (4) आंखें नहीं भरी।
(2) भाव पक्ष:-
                   कवि के रूप में सुमन जी ने रूढ़ियों का विरोध किया, शोषितों के प्रति सहानुभूति व्यक्त की और सामाजिक जीवन का चित्रण किया। आप की कविताएं भावभीनी है। उनमें स्वास्थ्य समाज की कल्पना के दर्शन होते हैं।
(3) कला पक्ष:-
                     भाषा- शैली-सुमन जी की भाषा में प्रवाह और प्रभाव के गुण विद्यमान है। उनकी कविताएं ओज गुण से युक्त और गेय है। सुमन जी सीधी, सच्ची लेकिन आवेग पूर्ण भाषा में रचनाएं लिखते हैं।
(4) साहित्य में स्थान:-
                              हिंदी के प्रगतिशील कवियों में 'सुमनजी' अग्रणीय है।उनकी कविता में कठिनाइयों का मुकाबला करते हुए जीवन की राह पर आगे बढ़ने का संदेश है। वह जीवन और जागरण के सच्चे कवि है, तथा रोमांटिक एवं मानवतावादी काव्य के गायक है।

             (16) विष्णुकांत शास्त्री
(1) रचनाएं:-
                 (1) कुछ चंदन की कुछ कपूर की
                 (2) चिंतन मुद्रा
                 (3) अनुचिंतन।
(2) भाव पक्ष:-
                    डॉक्टर शास्त्री द्वारा लिखी गई कविताएं जीवन के संवेदनशील क्षणों की भावना प्रधान अभिव्यक्ति है। 1955-56 तक प्रायः साहित्यिक गोष्ठियों में वे अपनी कविताएं सुनाया करते थे। उन्होंने प्रयास पूर्वक बहुत कम कविताएं लिखी। जीवन में जैसे-जैसे मोड़ आते गए, कविता उन्हीं के अनुरूप मुखरित होती गई। भाव के आधार पर उनकी कविताओं को राष्ट्रीय, विविधा, प्रेरणा व प्यार, भक्ति एवं काव्य अनुवाद के रूप में विभाजित किया जा सकता है।
(3) कला पक्ष:-
                    शास्त्री जी की भाषा ओजस्वी है। उसमें तत्सम शब्दों की बहुलता है। वीर रस की कविताओं में ओज- गुण प्रधान शब्दावली का प्रयोग है तथा शांत रस की कविताओं में माधुर्य व अनुप्रास की छटा स्थान- स्थान पर सहज ही परिलक्षित होती है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                               शास्त्री जी को आचार्य रामचंद्र शुक्ल सम्मान, साहित्य भूषण सम्मान, डॉ. राम मनोहर लोहिया सम्मान तथा राजर्षि टंडन हिंदी सेवी सम्मान प्राप्त हुए।

        (17) सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला'
(1)  रचनाएं:-
                (1) अनामिका
                (2) आराधना
                (3) अर्चना
                (4) गीतिका
(2) भाव पक्ष-कला पक्ष:-
                                 भाषा शैली-   निराला का काव्य दार्शनिक विचारधारा, गंभीर चिंतन और भाव- सौंदर्य की सन्निधि है। विवेकानंद का प्रभाव उन पर सुस्पष्ट है। उनके गीतों में प्रतीकात्मकता, संक्षिप्तता और संगीतात्मकता की प्रमुखता है।उनके काव्य में कहीं विराट की ओर रहस्यात्मक संकेत है, तो कहीं सामान्य जन की उत्पीड़न के चित्र है, कहीं कथा मुखर है, तो कहीं गीत माधुरी। निराला ने जन-जीवन से, दर्शन से, इतिहास और पुराण, हर जगह से शब्द लेकर भाषा को पूछते किया है। भाव के अनुरूप भाषा का सृजन और प्रवाह का अभिनिवेश निराला का अपना निजी वैशिष्ट्य है। रूपा को की छटा और अनुप्रासो का प्रबंध निराला में निराला है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                             हिंदी साहित्य में निराला के कृत्यित्व को उनके व्यक्तित्व ने और भी अधिक महनिय और जाज्वल्यमान बनाया है।

     (18) गजानन माधव मुक्तिबोध
(1) रचनाएं:-
                (1) चांद का मुंह टेढ़ा
                (2) काठ का सपना
                (3) तार सप्तक में छपने वाली कविताएं
                (4) सतह से उठता हुआ आदमी
(2) भाव पक्ष:-
                   मुक्तिबोध की कविताओं का भाव पक्ष उन्नत तथा सम सामयिक है।समस्त परिवेश में कुछ पाने की ललक और जीवन के दल-दल में फंसे मानव को बाहर लाने का उन्होंने सदैव प्रयास किए हैं। इनकी भाषा परिमार्जित, प्रोढ तथा सबल है। सामान्य बोलचाल की भाषा के अतिरिक्त संस्कृत निष्ठा सामासिक पदावली से युक्त उनकी भाषा सरल एवं प्रवाहमय है।
(3) कला पक्ष:-
                   मुक्तिबोध की अनुभूति अत्यंत गंभीर तथा मार्मिक है। कल्पना में प्रसूनो की महक है जो भावना सागर की लहरों को मोहित करने वाली है। उनकी शैली प्रतीक एवं बिम्बो से अलंकृत है।मुक्तिबोध की काव्य शैली को अनगिनत काव्य शैलियों के मध्य सहज ही पहचाना जा सकता है।
(4) साहित्य में स्थान:-
                              गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रतिनिधि कवि है और जीवन मूल्यों के प्रयोग धर्मी कवि भी है। नई कविता को स्वरूप प्रदान करने में उनका विशिष्ट स्थान है।
                         (19) अज्ञेय
(1) रचनाएं:-
              (1) चिंता
              (2) हरी घास पर क्षण भर
              (3) कितनी नावों में कितनी बार
              (4) नदी के दीप।
(2) भाव पक्ष- कला पक्ष:-
                                   अज्ञेय की प्रारंभिक रचनाओं में छायावादी वैयक्तिकता, निराशा और वेदना के दर्शन होते हैं। प्रयोगवादी रचनाएं चिंता भाव और सौंदर्य बोध को नया मोड़ देती है, अभिव्यक्ति के नए आयामों और रूपों को स्वर देती है।
        अज्ञेय कवि ही नहीं कहानीकार और उपन्यासकार भी है। 'शेखर एक जीवनी', 'नदी के द्वीप', 'अपने- अपने अजनबी' इनके उपन्यास है। इन्होंने कहानियों के अतिरिक्त निबंध, यात्रा- व्रत आदि अनेक विधाओं पर लेखनी चलाईं है।
(3) साहित्य में स्थान:-
                             अज्ञेय बहुमुखी प्रतिभा के कलाकार है। वह दिनमान के कुशल संपादक के रूप में जाने जाते हैं।उनकी रचनाशीलता और क्रियाशीलता से सजे व्यक्तित्व और कृतित्व की हिंदी जगत में विशिष्ट स्थान है।

               (20) वीरेंद्र मिश्र
(1) रचनाएं:-
                 (1) मधुवंती
                 (2) धरती 
                 (3) वाणी के कर्णधार 
                 (4) गीता पंचम
(2) भाव पक्ष-कला पक्ष:-
                                 मिश्रजी समाज और साहित्य में व्याप्त रुढि, विषमता और अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करते रहे। मिश्रजी छायावादोत्तर गीतकारों में से हैं जिन्होंने अपने गीतों में अपने समय और समाज की प्रगतिशील आकांक्षाओं को अभिव्यक्त किया है।उनके गीतों में राष्ट्रीय गौरव के साथ-साथ साम्राज्यवाद, पूंजीवाद के घृणित स्वरूप का चित्रण तथा अन्यय,शोषण और विषमता के विरुद्ध एक सच्ची मानवीय चिंता के दर्शन होते हैं। इनके गीतों में शक्ति और दृढ़ता, आस्था और विश्वास की प्रतिध्वनिया लगातार मिलती है।उनके भाव भरे गीतों में जहां एक भावुक प्रेमी कवि के प्रणय की अनुगूंज है, वही व्यथा एवं पीड़ा के मार्मिक स्वर भी है।
                                                  वीरेंद्र मिश्र के गीतों की भाषा सहज, व्यावहारिक तथा लोक प्रचलित शब्द से युक्त है। उनके गीतों में कसावट और संगीतात्मकता है।1959 में नवगीत के रूप में कविता की भी वापसी हुई।
(3) साहित्य में स्थान:-
                              इन्हीं विशेषताओं के कारण वीरेंद्र मिश्र का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान है। वीरेंद्र मिश्र इस नवगीत परंपरा के विशिष्ट कवि माने जाते हैं।

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